शनिवार, 12 दिसंबर 2015

त्यार-वार

श्री गीता जयन्ती, on 21 December 2015
in 8 days and 06:31 hours.
Duration: No duration!
मकर संकरात/उत्तरैणी कौतिक, on 15 January 2016
in 33 days and 06:31 hours.
Duration: No duration!
गणतंत्र दिवस, on 26 January 2016
in 44 days and 06:31 hours.
Duration: No duration!
मौनी अमावस्या, on 08 February 2016
in 57 days and 06:31 hours.
Duration: No duration!
बसन्त पंचमी, on 13 February 2016
in 62 days and 06:31 hours.
Duration: No duration!
माघी पौर्णमासी, on 22 February 2016
in 71 days and 06:31 hours.
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महाशिवरात्रि, on 07 March 2016
in 85 days and 06:31 hours.
Duration: No duration!
खग्रास सूर्य ग्रहण, on 09 March 2016
in 87 days and 06:31 hours.
Duration: No duration!
होलिका दहन/पौर्णमासी, on 22 March 2016
in 100 days and 06:31 hours.
Duration: No duration!
होलिका प्रतिपदा/ छरड़ी, on 24 March 2016
in 102 days and 06:31 hours.
Duration: No duration!

पं० राम दत्त जोशी- उत्तराखण्ड के महान ज्योतिर्विद

भारत वर्ष में भले ही ग्रिगेरियन कैलेण्डर लोकप्रिय है, लेकिन हर क्षेत्र या सभ्यता के लोग अपने-अपने पंचांग के अनुसार ही शुभ कार्य सम्पन्न करवाते हैं। इसी प्रकार उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र में सबसे प्रचलित और मान्य पंचांग है “श्री गणेश मार्तण्ड सौरपक्षीय पन्चांग” इसके रचयिता थे स्व० राम दत्त जोशी जी, जिन्होंने आज से १०४ साल पहले इन पंचांग का प्रतिपादन किया था। पेश है इस महान ज्योतिर्विद का परिचय-
राम दत्त जोशी जी का जन्म नैनीताल जिले के भीमताल इलाके के शिलौटी गांव में कुमाऊं के राजा के ज्योतिर्विद पं० हरिदत्त जोशी जी के घर में १८८४ में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई, कुछ समय हल्द्वानी बेलेजली लाज में चलने वाले मिशन स्कूल में भी इनकी शिक्षा हुई। इसके पश्चात आप पीलीभीत स्थित ललित हरि संस्कृत विद्यालय में अध्ययनार्थ पहुंचे। यहां अध्ययन काल में आप पं० द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी और पं० सोमेश्वर दत्त शुक्ल जी के संपर्क में आये। ये विद्वान पुरुष सनातन धर्म के व्याख्याता और प्रचारक थे, आपका भी इस ओर रुझान बढ़ता चला गया। आपने अपने संपर्क पं० ज्वाला प्रसाद मिश्र, स्वामी हंस स्वरुप, पं० गणेश दत्त, पं० दीनदयाल शर्मा जी से भी बढ़ाये, ये लोग सनातन धर्म महासभा के पदाधिकारी थे। इसी दौरान आप आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती, पं० गिरधर शर्मा और पं० अखिलानन्द शर्मा के भी संपर्क में आये और लाहौर, अमृतसर, अलवर, जयपुर सहित पंजाब और राजस्थान के कई छोटे-बड़े शहरों में सम्पन्न शर्म सम्मेलनों को सम्बोधित कर सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार किया। विक्रमी संवत १९६४ में भारत धर्म महामंडल ने आपको “धर्मोपदेशक” की उपाधि से विभूषित किया। सम्वत १९७३ और १९८३ में इसी संस्था ने आपको “ज्योर्तिभूषण”  और महोपदेशक” की उपाधियों से विभूषित किया।
Ram_dutt_panchang_from_uttarakhand
रामद्त्त पंचांग
जोशी जी ज्योतिष के सशक्त एवं सिद्धहस्त लेखक थे। अपने जीवन काल में इन्होंने ७ पुस्तकों का प्रणयन किया था, यथा-ज्योतिष चमत्कार समीक्षा, महोपदेशक चरितावली, नवग्रह समीक्षा, प्राचीन हिन्दू रसायन शास्त्र, समय दर्पण, ठन-ठन बाबू और पाखण्ड मत चपेटिये। कुछ काल के लिये अवरुद्ध अपनी कुल परम्परा में पंचांग गणना को स्थिर रखते हुये आपने फिर से विक्रमी संवत १९६३ में “श्री गणेश मार्तण्ड पंचांग” मुंबई से प्रकाशित करवाया। उसके बाद इनका पंचांग कुमाऊं भर में लोकप्रिय हो गया आज भी इनके द्वारा बनाये पंचांग को आम भाषा में “राम दत्त पंचांग”  कहा जाता है। इनके बाद इनके भतीजे स्व० पं० विपिन चन्द्र जोशी द्वारा इस पंचांग को परिवर्धित किया गया और आज १०४ साल बाद भी इनकी पीढी इस पंचांग को प्रतिवर्ष प्रकाशित कराती आ रही है।
कुमाऊं केसरी स्व० बद्री दत्त पाण्डे जी को आपने “”कुमाऊं का इतिहास” लिखने में विशेष सहयोग दिया था, जिसका वर्णन श्री पाण्डे जी ने अपनी पुस्तक में भी किया है। संगीत और रामचरित मानस में आपकी विशेष रुचि थी, १९०६ में आपने भीमताल में रामलीला कमेटी बनाकर वहां पर रामलीला मंचन का कार्य प्रारम्भ करवाया। १९३८ में हल्द्वानी में आपने सनातन धर्म सभा की स्थापना की तथा इस सभा से माध्यम से सनातन धर्म संस्कृत विद्यालय की स्थापना करवाई।
आप घुड़सवारी में भी सिद्धहस्त थे तथा अपने जीवन में नियमितता, अनुशासन, स्वाध्याय और देवार्चन को बहुत महत्व देते थे। फलित ज्योतिष की घोषणाओं के कारण आपको तत्कालीन कई रजवाड़ों और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने समय-समय पर सम्मानित भी किया। १९६२ में आपका देहान्त हो गया।
स्रोत- श्री शक्ति प्रसाद सकलानी द्वारा लिखित “उत्तराखण्ड की विभूतियां”

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

आज मेरी बचपन का दोस्त ले याद आज आणि मके........

दूर छा मुलुक मेरो दूर रहगे याद आज मेरी
बचपन का दोस्त ले याद आज आणि मके
स्कूल का उ बिता दिन स्कूल का मौज मस्ती 
स्कूल में लड़ाई और मार और छुट्टी का टाइम हम सब माँ प्यार
गुल्ली डंडा क्रिकेट कांचा और ले खेली छन जो मैले खेल
बाजार माँ बैठी बे खाना और खाली कराना दोस्तु की जेब
आज याद बहुत आणि हो दाजु उ बचपन का दोस्तु का साथ
आज याद आणि उ घरे की बहुत याद
प्रदेश में नौकरी निचा प्रदेश का लोग आज हुमुके ढँकने लागि
बचपन की याद और पहाड़ु की याद रूल दी हो
आना रह्या मेरो पहाड़ माँ

नौजवानों को बचाना है, उत्तराखंड को नशा मुक्त बनाना है'“मेरा गाँव – मेरी पहचान”

नौजवानों को बचाना है, उत्तराखंड को नशा मुक्त बनाना है'
“डांडी मार्च”
(गोपेश्वर से देहरादून – 25 अक्टूबर – 7 नवम्बर)
“मेरा गाँव – मेरी पहचान”
साथियों,
उत्तराखंड राज्य के निर्माण की जिस अवधारणा के साथ कई वर्षों तक लड़ाई लड़ी गई, वो पहाड़ का विकास आज भी प्रासंगिक है I आज भीहम सब यह सोचते रहते हैं कि पहाड़ के विकास को लेकर जनमत से चुनी सरकार कुछ न कुछ करेगी I दुर्भाग्य कि चुनी हुई सरकार पहाड़ के विकास को अपना आधार न मान बस उस क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान या कार्य करने की योजना बनाती है और प्रभावशाली ढंग से क्रियान्विन करवाती है, जहाँ उन्हें विधानसभा की अधिकतर सीटों का फायदा हो सके, जनसँख्या के आधार पर हुए परिसिमन से पहाड़ उपेक्षित महसूस करता है I बस लच्छेदार बातें व विश्व स्तरीय बैठकों में मनन का विषय बन कर व अवार्ड पाने का एक बहुत सुन्दर जरिया बनके रह गया है I
विचारणीय पहलु यह है कि पहाड़ आम जनता का विकास का केंद्र या आधार न बन कर कई तरह के बाहरी उद्योग का केंद्र बनता जा रहा है, जहान्स्थानिया संसाधनों का उपयोग तो होता है लेकिन जनता की भागीदारी न होकर कुछ पूंजीपति, ठेकेदार, शराब माफिया, क्रेशेर माफिया, भू-माफिया, बड़े उद्योगपति, इत्यादि के आर्थिक श्रोत बन कर रह गए हैं I आगामी चुनाव में पार्टी फण्ड के लिए देन दारो के लिये खुश व फण्ड लेने के जरिये निर्मित किया जा सके I अपने आसपास चाटुकार व्यक्तियों को और फायदा पहुँचाना यह सरकार की प्राथमिकता हो गयी है I यही नही ९०% यह कार्य सामूहिक सह्भागीता से न होकर व्यक्तिविशेष सह्भागेता तक ही सीमित है I पहाड़ यानी माफिओं का कार्य स्थल, आर्थिकी की वृद्धि का जरिया I सहभागीता न होने के कारन जनता को न तो रोजगार मिल प् रहा है न तो सुविधा, न मूल भूत सुविधायें बल्किन पलायन का रुख अपनाना पड़ रहा है I अब हालात यह है कि उद्योग के नाम पर सरकार भांग की खेती के लिए लाइसेंस देने की बात कर रही है I एक तरफ सरकार नशा मुक्त उत्तराखंड की बात करती है ओर दूसरी तरफ पहले गाँव-गाँव तक शराब पहुँचाने के लिए शराब की दूकान खुलवाती है और अब भांग किखेती का लाइसेंस देने की बात कर रही है I पहाड़ के नौजवानो की अस्मिता व वजूद पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा करता यह नशाखोरी का उद्योग, आखिर नौजवानों के लिए सिर्फ नशाखोरी वाले उद्योग ही एक मात्र विकल्प है - रोजगार के नाम पे ? सवाल उठता है उस सार्थकता का जिसका तर्क सरकार देती है, सरकार चाहे कितने कड़े क़ानून बना ले, नशे की खेती का लाइसेंस मिलने से कैसे आम व्यक्ति व नौजवान इस नशे की चपेट से बचा पाएगी I हमारी पहाड़ की संस्कृती, सभ्यता व वैचारिक धरोहर व नौजवानों के भविष्य को ताकपर रख कर माफियाओं को पहाड़ में अपने पैर जमाने का मौका दिया जा रहा है I जल, जंगल, जमीन के साथ साथ हमारे पास जवानी ही एक मात्र बहुमुल्य धरोहर है, इसको संरक्षित रखना बहुत जरुरी है I हम पहले ही पहाड़ की सबसे बड़ी शक्ति मात्र शक्ति को खंडित होते देख चुके हैं, जिसको सरकार द्वारा शराब के लाइसेंस मे महिलाओ के नाम आवेदन से शक्ति को तोड़ने का सफल प्रयास किया I
आइये अपने अस्तित्व की रक्षा व पहाड़ की मर्यादा को बचाने के लिए नैतिकता की लड़ाई लडें I राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने नमक को लेके डांडी मार्च किया आज ह्म नशे की खेती के विरोध में डांडी मार्च कर रहे हैं, आइये नशामुक्त उत्तराखंड की लड़ाई में साथ आगे बड़े I
उत्तराखंड में अपनी मूल भूत सुविधाओं को लेके पहाड़ के लोग आन्दोलनरत है, सरकार मौन है I सरकार इन आन्दोलनों के प्रति अपनी जवाबदेही तय करें व श्वेत पत्र जारी करें I डांडी मार्च के देहरादून पहुँचने पर सरकार की जवाबदेही व ग्रामीणों के आंदोलनों के समर्थन में देहरादून के गाँधी पार्क में ८ नवम्बर से सत्याग्रह शुरू किया जाएगा I
“सत्याग्रह”
(जनांदोलनो की आवाज)
8 नवम्बर, गांधी पार्क, देहरादून, प्रातः 10 बजे

(गोपेश्वर से देहरादून – 25 अक्टूबर – 7 नवम्बर)
“मेरा गाँव – मेरी पहचान”
साथियों,
उत्तराखंड राज्य के निर्माण की जिस अवधारणा के साथ कई वर्षों तक लड़ाई लड़ी गई, वो पहाड़ का विकास आज भी प्रासंगिक है I आज भीहम सब यह सोचते रहते हैं कि पहाड़ के विकास को लेकर जनमत से चुनी सरकार कुछ न कुछ करेगी I दुर्भाग्य कि चुनी हुई सरकार पहाड़ के विकास को अपना आधार न मान बस उस क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान या कार्य करने की योजना बनाती है और प्रभावशाली ढंग से क्रियान्विन करवाती है, जहाँ उन्हें विधानसभा की अधिकतर सीटों का फायदा हो सके, जनसँख्या के आधार पर हुए परिसिमन से पहाड़ उपेक्षित महसूस करता है I बस लच्छेदार बातें व विश्व स्तरीय बैठकों में मनन का विषय बन कर व अवार्ड पाने का एक बहुत सुन्दर जरिया बनके रह गया है I
विचारणीय पहलु यह है कि पहाड़ आम जनता का विकास का केंद्र या आधार न बन कर कई तरह के बाहरी उद्योग का केंद्र बनता जा रहा है, जहान्स्थानिया संसाधनों का उपयोग तो होता है लेकिन जनता की भागीदारी न होकर कुछ पूंजीपति, ठेकेदार, शराब माफिया, क्रेशेर माफिया, भू-माफिया, बड़े उद्योगपति, इत्यादि के आर्थिक श्रोत बन कर रह गए हैं I आगामी चुनाव में पार्टी फण्ड के लिए देन दारो के लिये खुश व फण्ड लेने के जरिये निर्मित किया जा सके I अपने आसपास चाटुकार व्यक्तियों को और फायदा पहुँचाना यह सरकार की प्राथमिकता हो गयी है I यही नही ९०% यह कार्य सामूहिक सह्भागीता से न होकर व्यक्तिविशेष सह्भागेता तक ही सीमित है I पहाड़ यानी माफिओं का कार्य स्थल, आर्थिकी की वृद्धि का जरिया I सहभागीता न होने के कारन जनता को न तो रोजगार मिल प् रहा है न तो सुविधा, न मूल भूत सुविधायें बल्किन पलायन का रुख अपनाना पड़ रहा है I अब हालात यह है कि उद्योग के नाम पर सरकार भांग की खेती के लिए लाइसेंस देने की बात कर रही है I एक तरफ सरकार नशा मुक्त उत्तराखंड की बात करती है ओर दूसरी तरफ पहले गाँव-गाँव तक शराब पहुँचाने के लिए शराब की दूकान खुलवाती है और अब भांग किखेती का लाइसेंस देने की बात कर रही है I पहाड़ के नौजवानो की अस्मिता व वजूद पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा करता यह नशाखोरी का उद्योग, आखिर नौजवानों के लिए सिर्फ नशाखोरी वाले उद्योग ही एक मात्र विकल्प है - रोजगार के नाम पे ? सवाल उठता है उस सार्थकता का जिसका तर्क सरकार देती है, सरकार चाहे कितने कड़े क़ानून बना ले, नशे की खेती का लाइसेंस मिलने से कैसे आम व्यक्ति व नौजवान इस नशे की चपेट से बचा पाएगी I हमारी पहाड़ की संस्कृती, सभ्यता व वैचारिक धरोहर व नौजवानों के भविष्य को ताकपर रख कर माफियाओं को पहाड़ में अपने पैर जमाने का मौका दिया जा रहा है I जल, जंगल, जमीन के साथ साथ हमारे पास जवानी ही एक मात्र बहुमुल्य धरोहर है, इसको संरक्षित रखना बहुत जरुरी है I हम पहले ही पहाड़ की सबसे बड़ी शक्ति मात्र शक्ति को खंडित होते देख चुके हैं, जिसको सरकार द्वारा शराब के लाइसेंस मे महिलाओ के नाम आवेदन से शक्ति को तोड़ने का सफल प्रयास किया I
आइये अपने अस्तित्व की रक्षा व पहाड़ की मर्यादा को बचाने के लिए नैतिकता की लड़ाई लडें I राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने नमक को लेके डांडी मार्च किया आज ह्म नशे की खेती के विरोध में डांडी मार्च कर रहे हैं, आइये नशामुक्त उत्तराखंड की लड़ाई में साथ आगे बड़े I
उत्तराखंड में अपनी मूल भूत सुविधाओं को लेके पहाड़ के लोग आन्दोलनरत है, सरकार मौन है I सरकार इन आन्दोलनों के प्रति अपनी जवाबदेही तय करें व श्वेत पत्र जारी करें I डांडी मार्च के देहरादून पहुँचने पर सरकार की जवाबदेही व ग्रामीणों के आंदोलनों के समर्थन में देहरादून के गाँधी पार्क में ८ नवम्बर से सत्याग्रह शुरू किया जाएगा I
“सत्याग्रह”
(जनांदोलनो की आवाज)
8 नवम्बर, गांधी पार्क, देहरादून, प्रातः 10 बजे

"कभी हंस भी लिया करो"


सोने से पहले सोते हुए हनुमानजी के दर्शन जरूर करे .. और कमेन्ट बॉक्स में लिखे जय श्री राम ......!! 1 like = 1 comment 1 comment = 100 like 1 Share = 1000 like


सोमवार, 12 अक्तूबर 2015

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

भूमि पर अवैध निर्माण की शिकायत........

संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा : जिले के द्वारसों स्थित वन पंचायत डीडा के ग्रामीणों के प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को एसडीएम ¨रकू बिष्ट से मिलकर एक संस्था पर गांव में अवैध निर्माण का आरोप लगाया। ग्रामीणों ने कहा कि क्षेत्र में स्थानीय लोगों की नाप व बेनाप भूमि है, जिसमें गांव का चरागाह भी है। पिछले कुछ दिनों से एक संस्था अनुमति के बगैर यहां अवैध रूप से निर्माण कार्य कर रही है, .....www.jagran.com

बुधवार, 30 सितंबर 2015

रानीखेत,


यदि आप प्रकृति के सभी अद्भुत नजारों का एक ही स्थान पर आनंद उठाना चाहते हैं तो रानीखेत सबसे बेहतर विकल्प है।  (जिसने रानीखेत को नहीं देखा, उसने भारत को नहीं देखा) आप वहां अप्रैल के प्रारंभ से जून के मध्य या सितंबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक के समय में ही जाएं।सुंदर वास्तु कला वाले प्राचीन मंदिर, ऊंची उड़ान भर रहे तरह-तरह के पक्षी.....और शहरी कोलाहल तथा प्रदूषण से दूर ग्रामीण परिवेश का अद्भुत सौंदर्य आकर्षण का केन्द्र है। (रानीखेत)

रानीखेत में दर्शनीय स्थल
(1) शीलतखेत
(2) हेड़ाखान मंदिर
(3)द्वाराहाट
(4) सुरईखेत 

मंगलवार, 29 सितंबर 2015

S.Nailwal

Shailesh Nailwal


कुमाँऊ का संक्षिप्त इतिहास

कुमाँऊ का संक्षिप्त इतिहास


कुमाँऊ शब्द की उत्पत्ति कुर्मांचल से हुई है जिसका मतलब है कुर्मावतार (भगवान विष्णु का कछुआ रूपी अवतार) की धरती। कुमाँऊ मध्य हिमालय में स्थित है, इसके उत्तर में हिमालय, पूर्व में काली नदी, पश्चिम में गढ‌वाल और दक्षिण में मैदानी भाग। इस क्षेत्र में मुख्यतया ‘कत्यूरी’ और ‘चंद’ राजवंश के वंशजों द्धारा राज्य किया गया। उन्होंने इस क्षेत्र में कई मंदिरों का भी निर्माण किया जो आजकल सैलानियों (टूरिस्ट) के आकर्षण का केन्द्र भी हैं। कुमाँऊ का पूर्व मध्ययुगीन इतिहास ‘कत्यूरी’ राजवंश का इतिहास ही है, जिन्होंने 7 वीं से 11 वीं शताब्दी तक राज्य किया। इनका राज्य कुमाँऊ, गढ‌वाल और पश्चिम नेपाल तक फैला हुआ था। अल्मोड‌ा शहर के नजदीक स्थित खुबसूरत जगह बैजनाथ इनकी राजधानी और कला का मुख्य केन्द्र था। इनके द्धारा भारी पत्थरों से निर्माण करवाये गये मंदिर वास्तुशिल्पीय कारीगरी की बेजोड‌ मिसाल थे। इन मंदिरों में से प्रमुख है ‘कटारमल का सूर्य मंदिर’ (अल्मोडा शहर के ठीक सामने, पूर्व के ओर की पहाड‌ी पर स्थित)। 900 साल पूराना ये मंदिर अस्त होते ‘कत्यूरी’ साम्राज्य के वक्त बनवाया गया था।
कुमाँऊ में ‘कत्यूरी’ साम्राज्य के बाद पिथौरागढ‌ के ‘चंद’ राजवंश का प्रभाव रहा। जागेश्वर का प्रसिद्ध शिव मंदिर इन्ही के द्धारा बनवाया गया था, इसकी परिधि में छोटे बड‌े कुल मिलाकर 164 मंदिर हैं।
ऐसा माना गया है कि ‘कोल’ शायद कुमाँऊ के मूल निवासी थे, द्रविडों से हारे जाने पर उनका कोई एक समुदाय बहुत पहले कुमाँऊ आकर बस गया। आज भी कुमाँऊ के शिल्पकार उन्हीं ‘कोल’ समुदाय के वंशज माने जाते हैं। बाद में ‘खस’ समुदाय के काफी लोग मध्य एशिया से आकर यहाँ के बहुत हिस्सों में बस गये। कुमाँऊ की ज्यादातर जनसंख्या इन्हीं ‘खस’ समुदाय की वंशज मानी जाती है। ऐसी कहावत है कि बाद में ‘कोल’ समुदाय के लोगों ने ‘खस’ समुदाय के सामने आत्मसमर्फण कर इनकी संस्कृति और रिवाज अपनाना शुरू कर दिया होगा। ‘खस’ समुदाय के बाद कुमाँऊ में ‘वैदिक आर्य’ समुदाय का आगमन हुआ। स्थानीय राजवंशों के इतिहास की शुरूआत के साथ ही यहाँ के ज्यादातर निवासी भारत के तमाम अलग अलग हिस्सों से आये ‘सवर्ण या ऊंची जात’ से प्रभावित होने लगे। आज के कुमाँऊ में ब्राह्मण, राजपूत, शिल्पकार, शाह (कभी अलग वर्ण माना जाता था) सभी जाति या वर्ण के लोग इसका हिस्सा हैं। संक्षेप में, कुमाँऊ को जानने के लिये हमेशा निम्न जातियों या समुदाय का उल्लेख किया जायेगा – शोक्य या शोक, बंराजिस, थारू, बोक्स, शिल्पकार, सवर्ण, गोरखा, मुस्लिम, यूरोपियन (औपनिवेशिक युग के समय), बंगाली, पंजाबी (विभाजन के बाद आये) और तिब्बती (सन् 1960 के बाद)।       

Shailesh Nailwal